basic human emotion
Swayam Jagrukta

Basic human emotion change hota hai ya nahi?

(Basic human emotion) बुनियादी मानव की भावनाएँ नहीं बदलती हैं और वही बनी रहती हैं। हम ऐसा क्यों कहते हैं? इंसान होने के नाते हम सब समान भावनाओं को महसूस करते हैं। हालाँकि कुछ भावनाएँ परिस्थितियों के अनुसार दूसरों पर हावी हो सकती हैं। हमारे व्यक्तित्व के अनुसार कुछ भावनाएँ होती हैं जो हमारे लिए मूल हैं। यह इसपर निर्भर  करता है की हम एक स्थिति को कैसे समझते है और उसका क्या अर्थ निकलते हैं। 

मानव के व्यवहार के मुख्य 3 स्रोत  होते है  – ज्ञान, इच्छा और भावनाएं । 

हम अपनी सोच को बदलकर लंबे समय में अपने व्यक्तित्व और भावनाओं को बदलने की क्षमता रखते हैं। लेकिन फिर भी हमारे जीवन में कुछ basic / मूल भावनाएं हैं जो हमें उसी तरफ खींचती हैं जो हम आम तौर पर महसूस करते हैं। 

Toddler – Young  

जब हम छोटे होते हैं तो हम अपने आस पास की चीज़ो को देख कर सीखते हैं। हमारे सीखने का स्रोत होते है – हमारे माता-पिता , फिर हम जिन लोगों से मिलते हैं और जो कुछ भी हम देखते हैं। इस स्तर पर हम सिर्फ प्यार, लाड़ और खाना चाहते हैं। हमें सभी से समय और ध्यान चाहिए होता है लेकिन हमने चीजों को समझना नहीं शुरू किया होता। हम वोई करते हैं को हमें अच्छा लगता है। हालाँकि एक बच्चा भी अपनी पसंद और नापसंद बनाता है, जो उसके माता-पिता या भाई-बहनों से अलग और अनोखी हो सकती है । किसी व्यक्ति की मूल भावनाएं (emotion)  उसके बचपन से देखि जा सकती है। 

Teenager / टीनएजर  

जब हम अपने “teens” में प्रवेश करते हैं, हमें एहसास नहीं होता है लेकिन यौवन हमारे ऊपर हावी होता है। स्वीकार्यता, स्वतंत्रता, पहचाने, रिश्ते होना हमारे दिमाग पर कब्ज़ा करने लगते हैं। यह वह समय होता है जब हम सभी भेदनाओ/ emotions  को महसूस करते है जैसे – ईर्ष्या, घृणा, क्रोध, प्रेम, निर्भरता, दुःख इत्यादि । हम सीखते हैं और आगे बढ़ते हैं। यह एक बहुत ही नाज़ुक समय होता है जब हम वास्तव में अपने basic emotion को बना रहे होते हैं। 13 से 19 साल की उम्र के लिए सही मार्गदर्शन होना बहुत जरूरी है।  

हमारा आज का रूप हमारे अतीत में में बिताये हुए पलो से ही बनता हैं। 

Adult –  

30 साल की उम्र तक आते हमें काम करते हुए 7 – 9 साल हो जाते हैं। हम अपने जीवन में पैसा कमाने के लिए दौड़ते हैं और भावनाएं को ज़ादा महत्व नहीं देते। हम काम की जगह पर किसी भी भावनात्मक संबंधों से खुद को दूर करना शुरू कर देते हैं। यह अच्छा भी है क्योंकि फिर आप काम पे फोकस कर पते है। लेकिन साथ ही हम अपने घर में भी काम जैसा व्यवहार करने लगते हैं । हम सोचते हैं कि हमने अपने जीवन में पहले आलोचना, अकेलापन, घृणा, क्रोध, टूटे हुए रिश्तों का सामना किया है और हम फिर से सामना नहीं करेंगे। या हम अपनी भावनाओं को बहुत अच्छी तरह से नियंत्रित कर सकते हैं। लेकिन हम गलत हैं। हमारी ज़रूरतें हमें फिर से वही ग़लतियाँ करने पर मजबूर करती हैं।  

उदाहरण –

जब हम स्कूल या कॉलेज में किसी के साथ संबंध बनाते हैं, तो हमें उस व्यक्ति से प्यार नहीं होता, बल्कि उस व्यक्ति के लक्षणों के साथ होता है। वे लक्षण हमें एक विशेष तरीके से संतुष्ट करते हैं। हमें अच्छा लगता है जब हम उनके साथ होते हैं। हम उस संतुष्टि को बार-बार महसूस करना चाहते हैं। कई बार रिश्ते टूटते है। लेकिन बिना यह एहसास किए कि हम वास्तव में उन्ही लक्षणों को किसी दुसरे में ढूंढ  रहे होते हैं।  

इसलिए हम कहते हैं कि मूल मानवीय भावना (basic human emotion) या प्रकृति (nature) बदलती नहीं  है। अन्य भावनाओं की तुलना में एक या दो भावनाएं हमेशा अधिक प्रभावी होती  हैं।  

अगले लेख में हम चर्चा करेंगे कि हमारे या अन्य लोगों में ऐसी कौन सी भावनाएँ हैं जिनसे हमें सचेत रहना चाहिए? उन्हें सही तरीके से कैसे नियंत्रित (control) किया जाए।

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